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लेखनी प्रतियोगिता -10-Nov-2022

ये उजली चांदनी चमक रात
संग संग है तारों की बारात
कोई महबूब में खोया कहीं
सपनों में कटी किसी की रात
कर के अपने महबूब को याद
मैं निकला बाहर आधी रात
चांद दूर था गायब था चकोर
दूरी उसकी अखर रही थी
दीद को आंखें तरस रही थी
ओस बन कर बरस रही थी
चांद की खुबसूरती पर सबको नाज़
चांद की तनहाई की कोई न करे बात
मैं भी तनहा वो भी तनहा, हमने गुजारी
एक दूजे के सहारे  सर्दियों की लम्बी रात

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5 Comments

Gunjan Kamal

16-Nov-2022 08:23 PM

शानदार प्रस्तुति 👌

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Punam verma

11-Nov-2022 08:30 AM

Very nice

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Abhinav ji

11-Nov-2022 07:50 AM

Very nice👍

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